होली के आध्यात्मिक दोहे जिनधर्म March 19, 2022 Uncategorized होली के आध्यात्मिक दोहेव्रत संयम ले खेलते , वन में साधु फाग ।आठ कर्म की होलिका , जले ध्यान की आग ।। वीतरागता की चले , चेतन शुद्ध वयार ।शुद्धोपयोग में संत के , वहे ज्ञान की धार ।। सम्यक दर्शन साहित जो , चढ़ा भक्ति का रंग ।चमका दमका आतमा , देव शास्त्र गुरु संग ।। वस्त्रादिक घर वार का , पांच पाप का त्याग ।आत्म रंग में डूब कर , मुनिवर खेले फाग ॥ राग रंग को छोड़ कर , गाते मुनि निज गीत ।भोग अहितकारी लगा , लगा योग तप मीत ॥ राग द्वेष मद मोह की , हिंसक होली त्याग ।बुझा रहे गुरु क्रोध की , समता जल से आग ॥ मुक्ति श्री के मोह में , धरा दिगंबर रूप ।होली खेले पुण्य की , रंगने आत्म स्वरूप ॥ अष्टानिक में होलिका , नंदीश्वर त्यौहारसम्यकदृष्टि कर रहा , आतम का श्रंगार ॥ किया ज्ञान वैराग्य से , राग रंग को भंग ।होली खेले संतजन , आत्म गुणों के संग ॥ निर्भय होली की लगा कैशलौंच में राख ।सिद्धालय में जा वसो अष्ट कर्म कर राख ॥ 🎤वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर✍️