होली के आध्यात्मिक दोहे
व्रत संयम ले खेलते , वन में साधु फाग ।
आठ कर्म की होलिका , जले ध्यान की आग ।।
वीतरागता की चले , चेतन शुद्ध वयार ।
शुद्धोपयोग में संत के , वहे ज्ञान की धार ।।
सम्यक दर्शन साहित जो , चढ़ा भक्ति का रंग ।
चमका दमका आतमा , देव शास्त्र गुरु संग ।।
वस्त्रादिक घर वार का , पांच पाप का त्याग ।
आत्म रंग में डूब कर , मुनिवर खेले फाग ॥
राग रंग को छोड़ कर , गाते मुनि निज गीत ।
भोग अहितकारी लगा , लगा योग तप मीत ॥
राग द्वेष मद मोह की , हिंसक होली त्याग ।
बुझा रहे गुरु क्रोध की , समता जल से आग ॥
मुक्ति श्री के मोह में , धरा दिगंबर रूप ।
होली खेले पुण्य की , रंगने आत्म स्वरूप ॥
अष्टानिक में होलिका , नंदीश्वर त्यौहार
सम्यकदृष्टि कर रहा , आतम का श्रंगार ॥
किया ज्ञान वैराग्य से , राग रंग को भंग ।
होली खेले संतजन , आत्म गुणों के संग ॥
निर्भय होली की लगा कैशलौंच में राख ।
सिद्धालय में जा वसो अष्ट कर्म कर राख ॥
🎤वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर✍️